हिन्दी साहित्य, कविता और आलोचना
सुनती हो,
आजकल का मौसम खुशनुमा सा हो गया है,
खिड़की जब भी खोलता हूँ,
हल्की गुनगुणी सी हवाएं आती है,
बदन हल्की सी सिहर जाती है,
जी करता है,
तुम संग-संग साथ रहो और,
मैं तुम से प्यार करूँ।
क्रमशः...
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