प्रिय मान जाओ।
नाराज क्यों हो,
यह भी तो बता दो,
मैं वैसी एक ही कविता लिख दूँ,
मैं वैसा एक धुन ही बना दूँ,
मैं वैसा एक गीत ही लिख दूँ,
जिससे कि तुम मान जाओ,
उस नाराजगी का एहसास तो बताओ,
वैसी एहसास भरी बातें उस संगीत में डाल दूँ,
जिस से तू मान जाए,
दिल और मन में ओ तरंगे घूमने लगे,
मन झंकृत हो उठे,
मेरी प्यार भरी बातें याद आने लगे,
तुम मान जाओ , फिर से सीने से लिपट जाओ,
आखिर नाराज क्यों हो ,
प्रिय मान जाओ।
...क्रमशः
Keep it up 👍👍
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