किन्नर( हिजड़ा)


_____ओये हिजड़े__

आप और मैं अकसर ट्रेन से यात्रा करते है. कभी कभी मुझे ऐसा लगता है भारत की आधी जनसंख्याँ इन ट्रेनों, बसों और प्लेटफोर्म पर होती है. आप इस से अनुमान लगा सकते है भारत की बढती जनसंख्याँ कितना बड़ा मुद्दा है? खैर आज हम इस मुद्दे पर बात नहीं करेंगे. आज तो जनाब मैं आपको ट्रेनों की दुनिया में ले कर जाने वाला हूँ. मेरा ये यकीन हैं कि ट्रेन में सफ़र करते हुए आप भी मेरी तरह कई बार हिजड़ो की चपेट में आये होंगे. इन हिजड़ो को आता देख हमारे मुह से सर्वप्रथम गाली ही निकलती है.


एक बार की यात्रा का वर्णन यहाँ प्रासंगिक होगा. कुछ हिजड़े अचानक से हमारे डिब्बे में आ गए और वही अपने चिड परिचित अंदाज़ में लगे यात्रियों से पैसा मांगने.


“ए चिकने… चल निकाल ना…..”


बीच बीच में उनका वो हाथों का हाथों पर मारना तो आपको याद ही होगा .. कुछ युवा लड़के उनके साथ मस्ती कर रहे थे अगर दूसरी भाषा में कहे तो व्यंग कर रहे थे और कुछ मेरी तरह उनलोगों को गाली दे रहे थे. यात्रियों का ये मजाक और गाली कुछ यूं नागवार गुजरा उन्हें की उन्होंने एक आधे को बुरी तरह से पीट कर ज़ख़्मी कर दिया. मामला इतना बढ गया कि पुलिस को आना पड़ा और उन हिजड़ो की फ़ौज को खदेड़ा गया.


हमारा डिब्बा अब उन हिजड़ो के आतंक से महफूज़ था पर अभी भी लोग उन्हें गाली दे रहे थे. यात्रा के बाद घर पहुच कर मैंने पूरे घटनाक्रम पर फिर से अपनी दृष्टि दौडाई. कुछ सवालों ने सहसा मुझे घेर लिया और मुझसे अपना जवाब मांगने लगे.


“क्यूँ हम हिजड़ो को गाली देते हैं?”


“क्यूँ हम उन्हें व्यंग की दृष्टि से देखते है?”


“क्या उन्हें जीने का हक नहीं?”


“क्या वो भी हमारी तरह समाज की मुख्य धारा में है?”


जवाब भी है पर कितना तर्कसंगत आप खुद तय कीजिये.


हम उन्हें गाली देते है क्युकी वो जहाँ तहां खास कर कर के इन ट्रेनों में अपनी मनमानी करते है. हमसे पैसा लूटते हैं. मगर आप खुद ही सोचिये उनके पास इसके अलावा कोई उपाय है? बिलकुल नहीं. समाज ने इन्हें इतना उपेक्षित कर दिया की इनके बारे में किसी ने नहीं सोचा की इनको क्या काम दिया जाए. फिर इन लोगों ने ही कुछ सोचा अपने लिए जिसमे से ये भी एक काम है जिस से हम और आप चिढ़ते है. मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की आप में से किसी ने भी हिजड़ो को कहीं काम कर अपना पेट पालते नहीं देखा होगा. नहीं देखा इसमें हिजड़ो से ज्यादा दोष हमारे समाज का है जिन्होंने इन्हें इसका मौका नहीं दिया और इन्हें हर जगह अपमानित किया. हम उन्हें व्यंग की दृष्टि से देखते है क्यूकी वो न तो नर है न मादा. नर को उनमे मादा के कुछ लक्षण दिखते है और ये उन्हें उनके साथ बदसलूकी करने के लिए काफी लगता है. आप बदसलूकी करो ये तर्कसंगत है पर वो उस बदसलूकी के लिए आप पर हमला कर दे ये नाइंसाफी हो गयी. वाह. हमें बचपन में पढाया जाता है की तीन तरह के लिंग होते है. स्त्रीलिंग, पुलिंग और नपुंसक लिंग. ये वही नपुंसक लिंग है. इसमें इतने व्यंग की क्या बात है? आप और हम सिर्फ इनका मजाक ही उड़ाते है जो हम जैसे मर्दों से कम से कम उम्मीद नहीं की जाती. हम उनसे इसलिए भिन्न है की हमारी रचना उनसे थोड़ी अच्छी हो जाती है. हमें इसका गलत लाभ लेने से बचना चाहिए .


उन्हें जीने का उतना ही हक है जितना की आपको और मुझे. वो भी कुदरत की ही रचना हैं. हमारा देश इतना महान है कि हमने समलेंगिको को भी अब छूट दे दी है . उनके लिए अब हक की बात होने लगी है. शायद आगामी कुछ सालों में उन्हें शादी की भी अनुमति मिल जाये. ये हम उनके लिए कर रहे है जो कहीं न कहीं मानसिक रूप से विकृत है और उनके वातावरण ने या जिन्दगी की किसी घटना ने उन्हें ऐसा बना दिया पर हम इन हिजड़ो को अपमानित नजरो से देखते है जो पैदा ही कुछ दोष के साथ होते है. इन्हें कही भी गलत ठहराना इश्वर को गलत ठहराना ही होगा.


वो हमारी तरह समाज के मुख्य धरा में अगर होते तो समाज ने इन्हें इतना उपेक्षित नहीं किया होता. इनके लिए भी काम होते. इन्हें भी काम मिलता हमरे देश में अधिकारों की बड़ी बात होती है हर आदमी को अधिकार चाहिए. हम हाल ही में इस विवाद में उलझे रहे की महिला आरक्षण विधेयक पास हो की नहीं. महिलाओं को समाज में फिर भी काफी इज्ज़त है और काम मिले है पर इन हिजड़ो का दर्द भी कोई सुनेगा? महसूस करना तो दूर की बात है. क्यूँ कोई विधेयक इनके उत्थान के लिए नहीं लाया जाता और कितने शताब्दियों तक इन्हें ऐसे ही जीना होगा.


अगर फिर भी हम इनके लिए कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो कम से कम हमें अपने नज़रिए को इनके लिए जरुर बदलना चाहिए.

आप इस पर अवश्य सोचें। जरूरी नहीं कि मेरी सभी बातें ठीक हों। कौन दावा कर सकता है सभी बातों के ठीक होने का। ऐसा मैं सोचता हूं, वह मैंने कहा। उस पर सोचना। हो सकता है कोई बात ठीक लगे, तो ठीक लगते ही बात सक्रिय हो जाती है। न ठीक लगे, बात समाप्त हो जाती है। मैं कोई उपदेशक नहीं हूं। मुझे जो ठीक लगता है, वह कह देता हूं, निवेदन कर देता हूं।

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