प्रिय साथियों...
प्रिय साथियों कहाँ हो
अब तुम सभी की याद आती है
साथ जिनके हम जवां हुए
कुछ भूल गए कुछ याद हैं
मुझे भी बहुतों ने भुला दिया होगा
मैं यादों को शुरू कहाँ से करूं
मैं कौन से दोस्त को प्रथम स्थान दूँ
किसे अंतिम पर रखूं
सभी के साथ नाइंसाफी होगा
चलता हूँ गाँव में
जहां जन्म लिया जहां चलना दौड़ना सीखा
उन उंगलियों को कैसे भूला दूँ
जिसे थाम कर स्कूल आरंभ किया
मैं अब सिर्फ तुम्हें याद ही करता हूँ साथी
वो लड़कप्पन के साथी जो साथ ऐसे विताए
कब लड़कप्पन व्यतीत हुआ कब उनका साथ छुटा
कब हम दूर हुए,
वक़्त के साथ हम तो जुदा तो हुए
लेकिन पता चला चला
मैं सोचता रहा कभी मैं मिलूंगा ऐ साथी
जिंदगी के किसी मोड़ पर
शायद मैं भी याद रहूंगा तुम सभी के ख्यालो में
वो कोमल हाथ नन्हे मुन्ने बच्चे हम सब
वक्त कब बेड़िया खोल दी कि
अब हम सब आज़ाद हो गए
लेकिन अब भी हम सब दूर हैं।।
वो लड़कप्पन वाले साथी
तुम सब के साथ जिंदगी के अनमोल पल विताए
कुछ गलत कुछ अच्छा सीखा मैंने
मैंने दोस्ती को जाना
वो बचपन की यादों को सहेजना सीखा
अभी अभी जो कुछ दोस्त अलग हुए थे
उन्हें दिमाग में रखने लगा ।
जब मिला मतलबी दोस्तों के साथ
तब पुराने दोस्त याद आने लगे
उन पुरानी यादों की किताब को खोल कर
पुरानी धुंधली तस्वीर की पन्नो को पलटने लगा
उन्ही में सुकून मिलता रहा
उन्ही के सहारे जिता रहा।।
दिवेश चंद्रा
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