चीलवाली कोठी: सारा राय

 चीलवाली कोठी उपन्यास प्रसिद्ध उपन्यासकार सारा राय द्वारा लिखी गई एक चर्चित उपन्यास है। यह उपन्यास छह खंडों में विभक्त है। सारा राय हिंदी साहित्य जगत में अपनी रचनाओं द्वारा प्रसिद्धि प्राप्त कर रही हैं। सामाजिक समस्याओं एवं जटिलताओं पर अपने विचार उपन्यास तथा कहानी आदि के माध्यम से रखती हैं। सामाजिक समस्या एवं जटिलताओं से परिपूर्ण उनकी उपन्यास चीलवाली कोठी है। इस उपन्यास के माध्यम से लेखिका बीसवीं सदी के भारतीय समाज में चल रही भेदभाव तथा अनाथ आश्रम की समस्याओं को बताने का प्रयास किया है उपन्यास में महिलाओं की सामाजिक समस्या, आर्थिक समस्या, वर्ग, जाति पर भी विमर्श किया है।

          यह उपन्यास पूर्वदीप्त शैली (फ्लैशबैक) शैली में लिखी गई है। छः अध्याय में यह उपन्यास है। दिल्ली में एक कमरे में बैठकर मीना (मीनाक्षी) अपने बचपन से लेकर अभी तक की सारी घटनाओं को याद कर रही है। ‘चिलवाली कोठी, 1886 औसानगंज’1 यह वही पता है जहां पर मीना का आधा जीवन व्यतीत होता है। उसके जन्म के कुछ दिन बाद उसकी माँ की मृत्यु हो जाती है।2

उसके पिता बनारस में बेचने के लिए आते हैं ‘अनाथ आश्रम की मालकिन दिद्दा जी 100 में खरीद लेती है’।3 यहां से उसके अनाथ आश्रम जीवन की शुरुआत होती है। मीना के पिता निकम्मा और शराबी होने के कारण उसे बेचने के लिए बनारस आता है। मीना की जगह कोई लड़का का अगर जन्म हुआ होता तो शायद लड़का को बेचने के लिए उसके पिता नहीं आते। हमारे समाज में लड़का और लड़की को लेकर हमेशा से भेदभाव रहा है की लड़का होगा तो वंश आगे बढ़ेगा यह हमारा नहीं हमारी सामाजिक मानसिकता का दोष है जो सदियों से लड़कियों को हेय की दृष्टि से देखा जाता रहा है। देखा जाए तो एक माँ के बिना घर कैसे सुना हो जाता है। जिसके कारण मीना के पापा उसे बेच देते हैं की इसकी देखभाल कौन करेगा। एक स्त्री को समाज के हर प्रकार के सामाजिक प्रताड़ना को झेलना पड़ता है। अनाथ आश्रम में भरपेट भोजन नहीं मिलता है। दीवाल के चुने खाना, खराब खाना, फफूँदी वाला बिस्किट देना खाने के लिए ऐसी बिते समस्याओं के साथ अपने जीवन को याद कर रही है।4 यह दिक्कत भारत के संस्थाओं में है और जो एनजीओ जैसी संस्थाएं हैं उन में भी यह समस्या है। जहाँ सुविधा पहुंचनी चाहिए वहां सुविधाएँ नहीं पहुँच पाती है।

‘जब मीना 12 साल की हो जाती है तब लीला नारायण राय, प्रणवनारायण दास जी की पत्नी मीना को अनाथ आश्रम से ले आती है, ‘चीलवाली कोठी’ में चीलवाली की वह शानदार फाटक उसके दोनों खंभों पर चील भारी पत्थर से तराशी हुई पंख फैलाए नुकीले पंजे बस नोक से ही खंबे पर टीके हुए अब उड़ी तब उड़ी। यह भवन अंग्रेजों के जमाने से है यह पूरे बनारस में ‘चीलवाली कोठी’ के नाम से प्रसिद्ध है।’5 लीलानारायण मीना को अपने घर बेटी बनाकर लाते हैं लेकिन नौकरों वाले घर में ही उसको रखती है खाना उसे उसे कमरे में ही दिया जाता है। वह सभी के साथ बैठकर नहीं खा सकती है। यहां पर जाति और वर्ग भेद को देखा जा सकता है। एक अनाथ 12 साल की लड़की को अपने जीवन में बहुत कुछ देखना और अनुभव करने वाली समाजिक चित्रण को अनुभव कर रही है। लीला नारायण का बड़ा बेटा विक्रम नारायण दास जो दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़कर घर आता है। अनाथ बस्ती में जाकर बच्चों को पढ़ाता है, लेकिन यह काम कुछ दिन तक करता है। ‘विक्रम और मीना एक दूसरे से प्रेम करने लगते हैं’।6 जो कि उनके घर में सभी को यह पसंद नहीं आता है लीला नारायण हमेशा मीना को बोलती है विक्रम को भाई बोलो लेकिन वह ऐसा नहीं करती है घर की स्थिति को देखते हुए लीला नारायण विक्रम की शादी बनारस के एक बिजनेसमैन की बेटी से करा देती है। विवाह के कुछ दिन बाद ‘मीना नहा रही होती है की बाथरूम में उसके पैर फिसल जाते हैं और वह गिर जाती है डॉक्टर के पास जब जाती है तब उसे पता चलता है कि वह गर्भवती है।’7 उसका गर्भपात कराया जाता है। जब एक बिन ब्याही लड़की माँ बनती है तो उसे हमारा भारतीय समाज एक हीन नजर से उसे देखता है। यह 21वीं सदी की ही बात नहीं है यह सदियों से चली आ रही परंपरा है। हमारा पुरुषवादी समाज हमेशा से स्त्रियों को हीन नजर से देखता आया है। इस आधुनिकतावाद के समय में भी व्यक्ति कहने को तो आधुनिक कहता है लेकिन हमारी सोच हमारे समाज की सोच अभी भी वही पौराणिक मिथकों से भरा हुआ कुंठित है जबकि इस गलती के लिए जिम्मेदार लड़का भी होता है, लेकिन हमारा समाज लड़की को ही दोषी ठहराता है। मीना उस बच्चे को प्यार की निशानी समझकर रखना चाहती थी लेकिन यह संभव नहीं हो सका। अगर उसका बच्चा बच भी जाता तो हमारा समाज उसे ताने दे दे कर जीते जी मार देता । समाज उसे आत्महत्या करने पर मजबूर कर देता और उसका बच्चा फिर अनाथ आश्रम में चला जाता यहां से फिर एक दूसरी मीना की कहानी शुरू होती। हमारे समाज के अनुसार कहानियाँ लिखी जाती है कहानी के अंत में एक स्त्री एक लड़की को ही जन्म देती है न की लड़का को क्योंकि यह हमारे समाज की मानसिकता को दर्शाता है। पुत्री के विछोह में मीना गुस्से में विक्रम को बहुत कुछ बोलती है। उस तनाव में आकर विक्रम आत्महत्या कर लेता है।’8 जिसके कारण लीला नारायण का घर पूरी तरह से बिखर जाता है कुछ दिन बाद लीला नारायण की मृत्यु हो जाती है। ‘चीलवाली कोठी’ घर में उर्मी विक्रम की बहन और विनीता रह जाती है। घर की आर्थिक समस्या बढ़ जाती है। ‘चीलवाली कोठी’ घर को किराए पर देना पड़ जाता है लोन को शादी विवाह के लिए किराए पर देना पड़ता है जिससे घर की आर्थिक समस्या सुधरे। उर्मिला आजीवन विवाह नहीं करती है। वह अपनी भाभी के साथ में ‘चीलवाली कोठी’ में आजीवन रहती है। दिल्ली के एक स्कूल में मीना पढ़ाने लगती है बनारस हमेशा-हमेशा के लिए वह छोड़ देती है।

सारा राय इस उपन्यास के माध्यम से एक अनाथ बच्चे की ‘मनोदशा’ तथा ‘भारतीय समाज में स्त्रियों के साथ सामाजिक एवं आर्थिक भेदभाव’ को प्रदर्शित करने का सफल प्रयास किया है। इस उपन्यास में या स्पष्ट रूप से दिखाने का प्रयास किया गया है कि हमारे समाज में स्त्रियों के पास कोई आर्थिक अधिकार नहीं होने के कारण उन्हें अपने जीवन के कदम दर कदम समस्याओं को झेलना पड़ता है।

हिंदी साहित्य में स्त्री चिंतन के संदर्भ में यह उपन्यास अपने उद्देश्य में सफल है क्योंकि इसमें एक अनाथ बच्ची से लेकर एक पुरुष स्त्री तक की जीवन यात्रा में बाधक बन रहा भारतीय समाज तथा स्त्रियों के पास आर्थिक अधिकार ना होना कैसे की स्त्री को अंदर से तोड़ देता है। तथा मजबूर कर देता है, वे भली प्रकार दर्शाया गया है या उपन्यास हिंदी भाषा के पाठक वर्ग के लिए भारतीय समाज की जटिलताओं एवं एक अनाथ स्त्री के जीवन संघर्ष को करीब से समझने के लिए अच्छा माध्यम हो सकता है।

संदर्भ:

1.   चीलवाली कोठी, सारा राय, पृ. 66

2.   वही, पृ. 31

3.   वही, पृ. 30

4.   वही, पृ. 14

5.   वही, पृ. 48

6.   वही, पृ. 128

7.   वही, पृ.  169

8.   वही, पृ. 171

 

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